उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।
जन-जन के जीवन में
फिर से नव स्फूर्ति, नव प्राण भरो।
नई प्रात है नई बात है नया किरन है, ज्योति नई।
नई उमंगें, नई तरंगें नई आस है, साँस नई।
युग-युग के मुरझे सुमनों में नई-नई मुस्कान भरो।
पुन: नया निर्माण करो।।1।।
डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ नए स्वरों में गाते हैं।
गुन-गुन, गुन-गुन करते भौंरें मस्त उधर मँडराते हैं।
नवयुग की नूतन वीणा में नया राग, नव गान भरो।
पुन: नया निर्माण करो।।2।।
कली-कली खिल रही इधर वह फूल-फूल मुस्काया है।
धरती माँ की आज हो रही नई सुनहरी काया है।
नूतन मंगलमय ध्वनियों से गुँजित जग-उद्यान करो।
पुन: नया निर्माण करो।।3।।
सरस्वती का पावन मंदिर शुभ संपत्ति तुम्हारी है।
तुममें से हर बालक इसका रक्षक और पुजारी है।
शत-शत दीपक जला ज्ञान के नवयुग का आह्वान करो।
पुन: नया निर्माण करो।।4।। -
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